इतिहास के झरोखे से :- बलिया
प्राचीन काल से ही वर्तमान बलिया जिला खोसता की राजधानी में सम्मिलित था। उत्तर पूर्वी दिशा में गंगा नदी खोसला की सीमा निर्धारित करती थी और पूरा बलिया जिला उसी में जुड़ा हुआ था।
सूर्यवंशी इस खोसला प्रदेश में रहने वाले सबसे प्राचीनतम/पहला खानदान था। उन्होने बलिया में एक पूर्ण रूप से कार्यकारी सरकार को स्थापित किया। मनु के जेष्ठ पुत्र इच्चवांशु यहां का प्रथम शासक था जिसके वैदिक संस्कृति में ख्याति प्राप्त थी।
16वीं शताब्दी में खोसला 16 महाजनपदों में से एक था। यहां पर महाखोसला का राज्य चलता था। यह जनपद जैन और बुद्ध की शिक्षाओं से अत्यधिक प्रभावित था।
खोसला, मोर्या, सांगा, कुशानन आदि अनेको खानदानों ने यहां पर शासन किया। कुशानन खानदान के अन्त के पश्चात बलिया जनपद गुमनामी अंधेरों में डूब गया। फाहेन के भारत भ्रमण के दौरान यह जनपद बौद्ध धर्म के प्रभाव में आया।
13वीं शताब्दी के आरम्भ में मुसलमान शासक भारत आने लगे।
बलिया जिला स्वतंत्रता संग्राम और स्वतंत्रता सैनानियों के विचारों से अनमिग्न नहीं था। 1857 के गदर के दौरान यह जनपद स्वतंत्रता संग्राम की गतिविधियों का मुख्य केन्द्र था। दादा भाई नारांजी, पं. जवाहर लाल नहेरू,
एस एन बैनर्जी आदि इस जनपद में आये और यहां के निवासियों को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने हेतु प्रेरित किया।
सन 1925 में पुरूषोत्तम दास टाउंन, जवाहर लाल नहेरू बलिया आये और मिल्की में गांधी आश्रम के समारोह मे सम्मिलित हुए। इसी दौरान महात्मा गांधी भी बलिया आये।
बलिया जनपद ने सिविल डिस्ओविडियन्स मोवमेंट में भाग लिया। इस जनपद के निवासियों ने जनपद के ग्रामीण क्षेत्रों से भी नमक सत्याग्रह में भाग लिया।
12 अप्रैल 1930 को नमक आन्दोलन का अन्त हुआ और उत्पादित नमक खुले आम बाजारों में बिकने लगा। तत्पश्चात यही नमक रिओटी, रस्रा और बन्ध में बनाया जाने लगा।
प्राचीन काल से ही वर्तमान बलिया जिला खोसता की राजधानी में सम्मिलित था। उत्तर पूर्वी दिशा में गंगा नदी खोसला की सीमा निर्धारित करती थी और पूरा बलिया जिला उसी में जुड़ा हुआ था।
सूर्यवंशी इस खोसला प्रदेश में रहने वाले सबसे प्राचीनतम/पहला खानदान था। उन्होने बलिया में एक पूर्ण रूप से कार्यकारी सरकार को स्थापित किया। मनु के जेष्ठ पुत्र इच्चवांशु यहां का प्रथम शासक था जिसके वैदिक संस्कृति में ख्याति प्राप्त थी।
16वीं शताब्दी में खोसला 16 महाजनपदों में से एक था। यहां पर महाखोसला का राज्य चलता था। यह जनपद जैन और बुद्ध की शिक्षाओं से अत्यधिक प्रभावित था।
खोसला, मोर्या, सांगा, कुशानन आदि अनेको खानदानों ने यहां पर शासन किया। कुशानन खानदान के अन्त के पश्चात बलिया जनपद गुमनामी अंधेरों में डूब गया। फाहेन के भारत भ्रमण के दौरान यह जनपद बौद्ध धर्म के प्रभाव में आया।
13वीं शताब्दी के आरम्भ में मुसलमान शासक भारत आने लगे।
बलिया जिला स्वतंत्रता संग्राम और स्वतंत्रता सैनानियों के विचारों से अनमिग्न नहीं था। 1857 के गदर के दौरान यह जनपद स्वतंत्रता संग्राम की गतिविधियों का मुख्य केन्द्र था। दादा भाई नारांजी, पं. जवाहर लाल नहेरू,
एस एन बैनर्जी आदि इस जनपद में आये और यहां के निवासियों को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने हेतु प्रेरित किया।
सन 1925 में पुरूषोत्तम दास टाउंन, जवाहर लाल नहेरू बलिया आये और मिल्की में गांधी आश्रम के समारोह मे सम्मिलित हुए। इसी दौरान महात्मा गांधी भी बलिया आये।
बलिया जनपद ने सिविल डिस्ओविडियन्स मोवमेंट में भाग लिया। इस जनपद के निवासियों ने जनपद के ग्रामीण क्षेत्रों से भी नमक सत्याग्रह में भाग लिया।
12 अप्रैल 1930 को नमक आन्दोलन का अन्त हुआ और उत्पादित नमक खुले आम बाजारों में बिकने लगा। तत्पश्चात यही नमक रिओटी, रस्रा और बन्ध में बनाया जाने लगा।
भौगौलिक स्थिति
जिला बलिया उत्तर प्रदेश की एक प्रशासनिक भौगोलिक इकाई है।जिला बलिया का अक्षांश और देशान्तर है :-
भौगोलिक क्षेत्र :-
श्री मिठाई लाल गुप्ता
(अध्यक्ष)
श्री सुभाष कुमार
(अधिशासी अधिकारी)